जीव का स्वरूप
- जीव भोक्ता ब्रह्म
- १ रथ है ये शरीर रथ है इसके इंद्रियां घोड़े हैं मन लगाम है बुद्धि ड्राइवर हैं आत्मा सारथी हैं इतने का नाम भोक्ता माने जीव यानि मैं, इनको ५ गली में ले जा सकते हैं, ३ मायिक जहाँ दुख ही दुख, मोक्ष ब्रह्मानंद एक रस सुख, प्रेम नगर प्रतिक्षण वर्धमान प्रेमानंद ही प्रेमानंद
- अज्ञान 'मैं' को शरीर मानना
- किसी से अपना परिचय पूछो, आपका परिचय ? मैं कलेक्टर हूँ, आपकी उपाधि नहीं पूछ रहा आपका परिचय पूछ रहा, मेरा नाम नंदकिशोर, आपका नाम नहीं पूछ रहा, मैं मनुष्य, मनुष्य तो आपका शरीर है, मैं आपका परिचय पूछ रहा, अरे क्या अजीब आदमी है, और क्या हैं आप, आप अपने को नहीं जानते तो आपको पागलखाने में रेहना चाहिए
- जैस बादलों से सूर्य ढक जाता है ऐसे जीव का ज्ञान अनादिकाल से निरंतर अज्ञान से आवृत है अज्ञान अनादिकाल से हावी है जीव पर इसलिए जीव को ‘जड़’ यानी अज्ञानी/मूर्ख कहा गया है इसके कारण जीव मोहित है
- मैं कौन हूँ
- १ फूल आपको दिखाया जाए ये फूल की परिभाषा करो तो आप क्या करेंगे ? १ गुलाब का पेड़ होता है उसमें हरे हरे पत्ते होते हैं उसमें ये फूल निकलता है ऐसे ही मैं कौन के उत्तर में यही तो होगा जिस भगवान से हम अनादि उत्तपन हुए, उस भगवान का अंश मैं हूँ
- १ आम का फल दिखाया जाए और बताया जाए की ये क्या चीज है ? इसके लक्षण बताओ ये कहाँ से टपका ? १ आम का पेड़ होता है उस आम के पेड़ में पहले डाल पैदा होती है फिर पत्ते होते हैं फिर बौर आता है फिर फल लगता है वो आम है ऐसे ही मैं कौन के उत्तर में यही तो होगा जिस भगवान से हम अनादि उत्तपन हुए, उस भगवान का अंश मैं हूँ
- आत्मा शरीर में चेतना का विस्तार करता है
- जैसे दीपक स्वयं प्रकाशित है और जहाँ रहता है उसे भी प्रकाशित करता है ऐसे आत्मा नित्य चेतन है और जिस शरीर में जब तक रहता है उसे भी चेतन बनाए रहता है
- जैसे चंदन का १ बूँद लगाने से सारे शरीर में ठंडक अनुभव होता है ऐसे आत्मा शरीर में रेहने से सारे शरीर में चेतना का अनुभव होता है
- जैसे फूल की ख़ुशबू फूल में रहती है और फूल से बाहर भी जाती है ऐसे आत्मा का चैतन्य गुण सारे शरीर में विस्तृत होता है
- जैसे अग्नि के बाहर उसकी उषाणता विस्तृत होता है ऐसे जीव ह्रदय में रहकर सारे शरीर में चेतना की विस्तृती करता है
- आत्मा का परिमाण नित्य है
- जीव ब्रह्मानंद रूप महासमुद्र में क्षुद्र कणिका की तरह उसी प्रकार अवस्थित जिस प्रकार बहुत विस्तृण प्रज्वलित अग्नि राशि के बीच छुद्र लोह खंड अगनिवत बनकर, अग्नि का आकार धारण करके अपने पृथक अस्तित्व की रक्षा करता है ऐसे ही जीव मुक्तावस्था में भी जीव अपना पृथक अस्तित्व रखता है, सायुज्य मुक्ति में जीव ब्रह्म के साथ तादात्म्य को प्राप्त होता है
- आत्मा शरीर नहीं है
- जब रमेश मर गया तो लोग कहते हैं हम उसको देखने जा रहे हैं, रमेश तो चला फिर किसको देखने जा रहे, उसकी बॉडी को, मृत शरीर, मरने के बाद हम कहते हैं नास्तिक भी, रमेश चला गया, जबकि उसका शरीर सब देख रहे हैं तो इसका मतलब ये शरीर से भिन्न कोई मैं है, मैं शरीर नहीं है, कम्युनिस्ट भी मानते हैं शरीर अलग है आत्मा अलग है अन्यथा जब तब मृत शरीर रहती है यानी उसको अभी जलाया दफनाया नहीं गया तब तक तो उन्हें नहीं कहना चाहिए की ये मर गया क्योंकि मृत शरीर तो रखा है दिख रहा है वहीं
- जीव जिस शरीर में जाता है उसी को मैं मान लेता है
- १ बूढ़ा गरीब लकड़ी का गट्ठा लेकर जंगल से घर जा रहा था, बहुत थक गया था पसीना पसीना हो गया, तो १ छोटा सा मंदिर था वहीं पर पटक कर बैठ गया और कहता है 'हे भगवान मौत भी नहीं आती मुझको, इतना दुःख भोग रहा हूँ' तो यमराज को मजाक सूझा और जाकर खड़े हो गए, अरे आप कौन हैं ? अरे तुमने बुलाया था न की मौत भी नहीं आती तो मैं आ गया, ऐ क्या, अरे नहीं साहब अब तो चलाना पड़ेगा, अरे साहब क्या बात करते हैं आप मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं मेरे ये है मेरे वो है सब काम बाँकी है अरे आपने बुलाया है तो मैं क्या करूँ उसमें, नहीं महाराज हमको छोड़ दो, अरे इतना दुःख भोग रहे हो तुम चलो न, अरे हम दुःख भोग लेंगे लेकिन हमको मत ले जाओ, हाँ हम लोगों का यही हाल है कितना दुःख भोग रहे हैं डेली, जीव जिस जिस शरीर में जाता है उसी को मैं मान लेता है नारकी देह जिसमें इतना कष्ट दिया जाता है उसे भी छोड़ना नहीं चाहता कोई, इतनी देह में अहं बुद्धि हो गई है जीव की
- आत्मा शरीर व्यापक है
- आप लोग जानते हैं की गाँव में मंत्री होते हैं उसे पंचायत मंत्री कहते है हाँ और १ प्रोविंशियल मंत्री भी होता है प्रांत का, हर १ प्रांत में मंत्री होते हैं न, हाँ, १ सेंट्रल का मंत्री भी होता है, हाँ, सबको मंत्री कहते हैं लोग, आप कौन हैं ? मंत्री जी जा रहे हैं अब इसके बाद उससे पूछो कहाँ के मंत्री जी हैं ये ? सेंट्रल के हैं अच्छा ये कहाँ के है ? ये प्रोविंशियल मंत्री हैं यू.पी के है और ये कहाँ के हैं ? ये पंचायत के है गाँव के, अब जो जैसा दर्जा रखता है हम उसके पास बाद में ये जानने के बाद श्रद्धा रखेंगे लेकिन मंत्री सब कहलाते हैं ऐसे ही ये शरीर में व्याप्त 'मैं' ये भी आत्मा और समस्त ब्रह्माण्ड में व्यात परमात्मा वो भी आत्मा है और ये आत्मा सर्वव्यापक इसलिए नहीं है कि इस आत्मा को वेद कहता है कि ये शरीर से निकाल के और ऊपर को जाता है और फिर कर्म फल भोग के स्वर्ग नर्क लौट के आता है तो अगर सर्वव्यापक होता तो फिर जाता आता क्या फिर तो यहीं मिल जाता
- आत्मा सूक्ष्म शरीर के साथ स्थूल शरीर छोड़ता है
- साँप अपने ऊपर के चमड़े(केचुल) को तब छोड़ता है जब नीचे दूसरी तेह आ जाती है जबरदस्ती निकालो तो घाव हो जाता है, ऐसे जीव शरीर छोड़ता है इंद्रिय मन बुद्धि के साथ, जब शरीर लेकर आत्मा निकलेगी इस शरीर से तो हमारे आँख से वो दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि वोह शरीर भी सूक्ष्म होता है
- कोई फोड़ा हो जाता तो जो चमड़ा नीचे आ जाता है तब ऊपर का अपने आप निकल जाता है जबरदस्ती निकालो तो घाव हो जाएगा, उसी प्रकार आत्मा को जब दूसरा शरीर मिल जाता है उसके बाद शरीर छोड़ता है। आपका experience ये नहीं हो सकता है ये सूक्ष्म विषय है
- जीव के असली रिश्तेदार भगवान, संसारी नकली
- जैसे लड़कियाँ छोटी छोटी लड़कियाँ १ गुड्डी गुड्डे का खेल खेलती है जब तक काम दोष से अपरिचित रहती हैं छोटी सी उम्र में, ये गुडिया है गुड्डा है इसका ब्याह करो बारात ले जाओ, कोई छू ले तो अ हल्ला मचाएगी लेकिन जब बड़ी हो गई और ब्याह हो गया और कोई कहे भई गुड्डी गुडिया तुम्हारा कहाँ है खेलो न, अब तो असली गुड्डी गुड्डा से खेलते हैं अब क्या उस से खेलेंगे अब तो हमारा ब्याह हो गया हमारा गुड्डा हो गया हम गुड्डी हो गए ये भी नकली गुड्डा गुड्डी है जब श्याम सुन्दर से प्यार करोगे तो असली गुड्डा वहाँ है जैसे ये कपड़े वाली गुड्डी गुडिया नकली तुमको अब मालूम पड़ने लगी आँख खुली ऐसे जब असली आँख खुलेगी तो ये भी गुड्डी गुड्डा तुम्हे नकली ही लगेगा ये फिजिकल सम्बन्ध है शारीरिक धर्म है भौतिक धर्म है त्रिगुणात्मक धर्म है अपर धर्म इसलिए ईश्वरीय धर्म में मायिक धर्म का लय हो जाता है ईश्वरीय धर्मावलम्बी के लिए मायिक धर्म का पालन आवश्यक नहीं रह जाता
- अपने बच्चो को छोड़ दो, अरे ये सब बच्चे हमारे बिना कैसे रहेंगे ? अरे रहे न रहे रोये गाये मरे तुम छोड़ो ये तुम्हारे बच्चे नहीं है बेवकूफ ये तो जीवात्माऐं है अपने कर्म के अनुसार आई है रहेंगी जब तक रहना है प्रारब्ध के अनुसार, तुम इनके चक्कर में न पड़ो, बड़े लार्ड बन गए तुम की मैं इनका बाप हूँ
- घर में १ माँ बैठी है वो माँ नहीं है वो परिवर्तनशील शरीर की नकली माँ है उसने तुमको नहीं बनाया, आत्मा की माँ परमात्मा ‘ही’ है, परमात्मा से जीव अनादि उत्पन्न है तुम शरीर नहीं हो शरीरी हो, तुम्हारा शरीर है तुम शरीर नहीं हो
- जैसे कोई सफर कर रहा है ट्रेन में तो हमारे बगल में, हमारे पास में और भी मुसाफिर बैठे हैं जिसका स्टेशन आया, स्टेशन आ गया हम उतरते हैं, आप उतर जायेंगे मैं अकेला रहूँगा, जी ऐसे ही है ये संसार का माँ बाप बेटा आदि का नाटक, बेटा पहले बोल पड़ा पिता जी मैं अब जा रहा हूँ, अरे तू पहले कैसे जायेगा मैं तुझसे इतना सीनियर हूँ, पिता जी ये सब नहीं होता हमारा स्टेशन आ गया हम उतरेंगे, हम सब मुसाफिर हैं अपने अपने टाइम से आये हैं जीवित हैं जाएँगे, अपने कर्म के अनुसार जीव पैदा होता है ठीक टाइम पर जैसा निर्धारित है भगवान के द्वारा संसार छोड़ता है
- ब्याह किया है तुम पति हो, हाँ तो ? तो हमारी सब डिमांड पूरी करो, रोटी दाल चावल सब का इन्तजाम करो, अरे कहाँ से करे ? कहीं से करो, चोरी डकैती करो, क्यों ब्याह करके लाए ? देखो हम लोग लड़ जाते हैं अपने पति से, अपने बाप से बड़े रुआब के साथ, हमारे बाप हो तुम्हारी ड्यूटी हो पढ़ाओ, तुम्हारी प्रॉपर्टी में हिस्सा है हमारा, दो नहीं तो मुकदमा लड़कर ले लेंगे, तो ऐसे ही भगवान हमारा सर्वस्व है, बाप, बेटा, पति, उनसे प्रेमानंद माँग लो
- जीव प्रतिक्षण आनंद के लिए कर्म करता है
- कोई व्यक्ति भूखा है और भीख मांगता है सचमुच भूखा है सचमुच भूखा है ३ दिन का और भीख माँगता है और किसी ने कहा आगे जाओ आगे जाओ, उसके पास गए, आगे जाओ आगे जाओ, सब के सब बदमाश है धूर्त है मक्कार है अब मैं भिक्षा ही नहीं मांगूंगा लो बैठ गया, अरे कैसे बैठ गए भूख लगी है खाना पड़ेगा, १० ने मना किया ग्यारहवे के पास जाओ शायद वहाँ कुछ हिसाब बैठ जाए तुम चुप नहीं बैठ सकते तो अगर १० बार तुमने मन लगाया भगवान में और १ बार लगा खीझों मत बन गई बात, आज १० बार में १ बार लगा है कल ९ बार में लगेगा फिर ८ बार में लगेगा फिर हर बार लगने लगेगा
- जीव आनंद का दास है
- संसार में २ व्यक्ति का अंगूठा निशान नहीं मिलता, इतने अरबों आदमी हैं किसी की शकल नहीं मिलती, १ बेटा लाखों में अपने बाप को पहचान लेता है गाय का बछड़ा गाय को पहचान लेता है गाय के स्तन में अगर दूसरा बच्चा मुँह लगाए, लात मार देती है उसको मालूम पड़ जाता है ये मेरा बच्चा नहीं है सब अलग अलग शकल इतने वृक्ष कराड़ो प्रकार के, अलग फूल, अलग फल लेकिन सब बिना किसी के सिखाए पढ़ाए आनंद ही चाहते हैं
- जीव अज्ञान युक्त है
- अगर किसी पुलिस के हवलदार को और कोई कहता है आप हवलदार साहब हैं तो अपने मुँह पर हाथ फेर देता है जी जी, वो ये नहीं कहता हम कोई SP कहो, DIJ कहो, IG कहो, हमारी इंसल्ट करते हो, हवलदार तो छोटी सी चीज होती है वो सुनकर खुश हो रहा है तो हम लोग अनंत जन्मों के कामी क्रोधी लोभी मोही स्वार्थी मक्कार ४२० हैं इसी में से १ शब्द कोई बोल देता है तो आग लग जाती है क्यों ? क्योंकि चारों स्क्रू ढीला है और क्या कारण है सुन्दरता भी है धन भी है बड़ी बड़ी डिग्रियां भी पढ़ कर के प्राप्त की है लेकिन ये गड़बड़ी सबके अन्दर है सबके अंदर
- १ मोहमडन व्यक्ति ने फकीर से पूछा की क्यों जी खुदा के यहाँ भीड़ भाड़ और कुछ चहल पहल है या दोजक में, नरक में ? उन्होंने कहा खुदा के यहाँ इने गिने लोग जाते हैं भई, ज्यादा भीड़ तो दोजक में है तो वो कहे की मौलवी साहब फिर तो हमारे लिए वही अच्छा है जहाँ भीड़ भाड़ हो, चक चक हो, उसको ४ जूते पड़े हमको १ हीं पड़ा, हम लोग ऐसे ही बेहया तो हैं दिन रात दुख भोगते हुए भी वैराग नहीं होता, ये 'मैं' और 'मेरे' को समझना पड़ेगा, अरे हम इस झगड़े में नहीं पड़ते जी, इस झगड़े में नहीं पड़ोगे तो दुःख के झगड़ों में पड़ोगे
- अंश अंशी को नेचुरल चाहता है
- ये मिट्टी का ढेला है ये मिट्टी का ढेला मिट्टी से प्यार करता है नैचुरल, तो क्यों जी फिर ये पृथ्वी से अलग क्यों है ? हमने पकड़ रखा है हम पकड़ना छोड़ दे बस अपने आप पृथ्वी में मिल जाएगा, तो माया ने जीव को पकड़ रखा है, अगर किसी प्रकार माया अलग हो जाए बस जीवात्मा परमात्मा का मिलन नैचुरल हो जाए, तो हम आनंद के अंश हैं इसलिए आनंद चाहते है
- नदियाँ समुद्र की ओर भाग रही है समुद्र उनका अंशी है, इसलिए हम लोग आनंद के अंश होने के कारण आनंद के लिए भाग रहे हैं, इसलिए जीव भगवान को पाकर ही परिपूर्ण होगा
- दूसरे से जो हम चाहते हैं वही हमारा स्वरूप
- अगर आप झूठ बोलते हैं दिन में पचास बार, आपसे अगर कोई १ झूठ बोला माँ/बाप/बेटा/भाई तो फीलिंग क्यों होती है, आपको खुश होना चाहिए हमारी पार्टी का आदमी हो गया, इतनी हैबिट होने पर भी दूसरे से सत्य व्यवहार चाहते है, दया का व्यवहार चाहते है, हमारा कोई उपकार कर दे बड़ी खुशी होती है
- आप दूसरे के घर का समान चुरा के लाते हैं और अगर चोर के घर में चोरी हो गई तो ऐतराज क्यों उसे ख़ुशी होनी चाहिए, लेकिन वो उल्टा बोलता है
- जीव का अज्ञान क्यों नहीं छूटता
- १ कम अकल हमेशा नासमझ इसलिए रहा क्योंकि उसको कोई अकल वाला मिला तो उसने अपने आप को इतना अकल वाला मान लिया की बड़े अकल वाले को उसने अपने से छोटा मान लिया, हमे जब कभी अपने जीवन में महापुरुष मिला भी तो अपनी अकल के कारण उस महापुरुष से हम वंचित रह गए, हमारी अकल ने कहा हम जहाँ हैं वहीं ठीक हैं, अपनी अकल से महापुरुष को समझने की चेष्टा की तो फिर हमारी अकल ने कहा, बस हम अपने से बड़ा किसी को नहीं मान सकते यानी अपनी बुद्धि को महापुरुष की बुद्धि में नहीं जोड़ सकते, सरेंडर नहीं कर सकते
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